बुधवार, 6 नवंबर 2019

दुनिया की सबसे बड़ी व्यापार समझौते RCEP डील से पिछे हटा भारत, चीनी माल के भारत में डंप होने तथा घरेलू चिताएँ इस डील से पिछे हटने का कारण बना

दुनिया की सबसे बड़ी व्यापार समझौते RCEP डील से पिछे हटा भारत, चीनी माल के भारत में डंप होने तथा घरेलू चिताएँ इस डील से पिछे हटने का कारण बना



थाईलैंड की राजधानी बैंकाक में हुए क्षेत्रीय व्यापार आर्थिक भागीदारी या  RCEP समझौते से भारत पिछे हट गया है। भारत ने क्षेत्रीय व्यापार आर्थिक भागीदारी समझौते में शामिल नहीं होने का फैसला लिया है। इसे दुनिया की सबसे बड़ा मुक्त व्यापार समझौते कहा जा रहा है जिसमें भारत , चीन, जापान, आस्ट्रेलिया, आसियान देश जैसे करीब 16 एशियाई देश शामिल होंगे।

India withdraws from the world's largest free trade agreement Regional Comprehensive Economic Partnership




अब भारत के इस व्यापार समझौते से बाहर आ जाने से इस व्यापार समझौते में शामिल होने वाले देशों को बहुत बड़ा धक्का लगा है, क्योंकि सबको लग रहा था कि भारत इस समझौते पर हस्ताक्षर करेगा। लेकिन घरेलू परिस्थितियों को देखते हुए भारत सरकार आरसीईपी समझौते से पिछे हट गई। Rcep डील दुनिया की सबसे बड़ी व्यापार डील है।


 इस समझौते की महत्व का अंदाजा इस बात बात से लगाया जा सकता है कि इन देशों में दुनिया की आधी आबादी रहती है इसका मतलब ये है कि कारोबार करने के लिए दुनिया का आधा बाजार इनको मिल जाएगा। दुनिया की एक तिहाई जीडीपी इस मुक्त व्यापार समझौते के माध्यम से आएगी। इसके साथ ही दुनिया के लगभग 40 फीसदी कारोबार पर rcep समझौते का हो जाएगा।


 इस समझौते में शामिल होना भारत के लिए घातक हो सकता था यही कारण था कि समूचा देश इस समझौते में शामिल होने के खिलाफ था। rcep समझौते में शामिल 16 देशों की अर्थव्यवस्था को देखें तो ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड को छोड़कर बाकी के 12 से ज्यादा देशों की अर्थव्यवस्था उत्पादन पर आधारित है इस समझौते में सबसे बड़ी ताकत चीन है जो दुनिया की सबसे बड़ा उत्पादक देश है।


 जबकि भारत की अर्थव्यवस्था आईटी और सर्विस सेक्टर पर आधारित है। इस समझौते से भारत को ज्यादा फायदा नहीं होता बल्कि भारत को बहुत नुकसान उठाना पड़ता। इस मुक्त व्यापार समझौते में भारत के शामिल हो जाने से भारत का निर्यात तो नहीं बढ़ता बल्कि आयात बहुत ज्यादा बढ़ जाता जिससे हमारी देश की व्यापार घाटा बढ़ जाता। इस समझौते में भारत के शामिल हो जाने से भारत के घरेलू उद्योगों और किसानों को बहुत नुकसान उठाना पड़ता।


 वर्तमान में भारत दुनिया का सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक देश है लेकिन उसका ज्यादातर ही साफ देश में ही कब जाता है जबकि इसके ठीक उलट न्यूजीलैंड अपने कुल दुग्ध उत्पादन का 95% हिस्सा निर्यात करता है। जो दूध भारत में किसान से ₹31 प्रति लीटर में खरीदा जा रहा है उसकी कीमत न्यूजीलैंड में सिर्फ ₹10 है। अगर यह दूध भारत में आने लगा दो देश के किसान और इससे जुड़े संगठन पूरी तरह से बर्बाद हो जाएंगे और भारत की घरेलू दुग्ध इंडस्ट्री पूरी तरह से बर्बाद हो जाएगी।


 भारत ने आसियान और पड़ोसी देशों से जो पहले फ्री ट्रेड एग्रीमेंट किए हैं उनकी वजह से देश का कपड़ा उद्योग पहले ही संकट में फंसा हुआ है। इन देशों के साथ व्यापार घाटा लगातार बढ़ता जा रहा है।


 rcep में भारत की सबसे बड़ी चिंता और आपत्ति टैरिफ रिडक्शन का आधार वर्ष 2014 किए जाने पर थी भारत चाहता था कि इसे 2019 रखा जाए 2014  आधार वर्ष रखे जाने का सबसे बड़ा नुकसान यह होता है कि लगभग सारे इलेक्ट्रॉनिक प्रोडक्ट्स शत-प्रतिशत ड्यूटी फ्री हो जाते और चीनी कंपनियां अपने उत्पादों से भारत के बाजार को लगभग पाठ देती। भारत सर्विस सेक्टर को इस आरसीपी समझौते में शामिल करवाना चाहता था जिसमें भारत बहुत ही मजबूती स्थिति में है इसके लिए बाकी देश तैयार नहीं थे इन सब कारणों से भारत ने आरसीएपी समझौते से पीछे हटने का फैसला लिया।

सोमवार, 4 नवंबर 2019

अमेरिकी वायुसेना के फिफ्थ जेनरेशन स्टेल्थ फाइटर एयरक्राफ्ट्स लॉकहीड मार्टिन F-22 राप्टर अन्य विमानों, जहाजों से 'God'd Eye View' साझा करने के लिए तैयार











अमेरिकी वायुसेना के फिफ्थ जेनरेशन स्टेल्थ फाइटर एयरक्राफ्ट्स F-22 अन्य विमानों, जहाजों से लिंक के लिए तैयार। F-22 रॉप्टर जल्द ही बैटलस्पेस के अपने 'God's Eye View' को साझा करेगा।


USAF stealth Fighter jet Lockheed Martin F-22 Raptor
Lockheed Martin F-22 Raptor





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अमेरिकी वायु सेना  में प्रवेश करने के तेरह साल बाद, लॉकहीड मार्टिन एफ -22 रैप्टर स्टील्थ फाइटर ने आखिरकार जहाजों, जमीनी बलों और अन्य विमानों के साथ संवाद करने की क्षमता हासिल कर लिया है।

अमेरिकी वायुसेना (USAF) की सबसे ताकतवर लड़ाकू विमान F-22 राप्टर है। यह फिफ्थ जेनरेशन स्टेल्थ फाइटर जेट है जिसे लॉकहीड मार्टिन ने बनाया है।


अमेरिकी वायुसेना (USAF)   और  लॉकहीड ने लिंक -16 डटलिंक पर लगभग 180 एफ -22 पर स्थापित शुरू करने की योजना बनाई है, जो अमेरिका और उसके सभी संबद्ध बलों को ध्वनि रहित रेडियो संदेश के माध्यम से स्थान और लक्ष्यीकरण डेटा को स्वैप करने की अनुमति देता है।


USAF stealth Fighter jet Lockheed Martin F-22 Raptor
Lockheed Martin F-22 Raptor



लिंक -16 अमेरिका और वायु सेना (USAF)  संबद्ध विमानों जहाजों वायु रक्षा प्रणालियों पर मानक है, लेकिन वर्तमान में एफ -22 में प्रणाली शामिल नहीं है। ऐसा इसलिए है क्योंकि एफ -22 अपने स्टेल्थ फीचर्स के साथ लिंक -16 संदेशों को प्रसारित करके अपना स्थान छोड़ सकता है।

अमेरिकी वायुसेना के एफ -22 रैप्टर पायलटों को एफ -22 के अद्वितीय, अत्यधिक-सुरक्षित डटलिंक के माध्यम से एक-दूसरे के साथ शब्द-रहित संवाद कर सकते हैं। लेकिन, उनको पास के F-16 के पायलट के साथ संवाद करने के लिए, एक रैप्टर पायलट को एक रेडियो चैनल खोलना होगा ।


यह एफ -22 के संचालन के तरीके में एक बड़ी खामी है। अपने स्टील्थ और शक्तिशाली सेंसर के साथ रैप्टर प्रत्यक्ष रूप से मुकाबला करने में अन्य बलों की मदद कर सकता है, बशर्ते कि यह ध्वनिहीन रूप से संवाद कर सके। वर्तमान में वायु सेना एफ -22 के गुप्त तरीके  से समझौता करने के लिए कुछ हद तक तैयार है ताकि इसे अधिक सहयोगी प्रणाली बनाया जा सके।


दो साल पहले, एफ -22 आधुनिकीकरण के प्रयासों में बढ़ते देरी का सामना करना पड़ा, जिसने अपने प्रतिद्वंद्वियों पर लड़ाकू के प्रभुत्व को धमकी दी, वायु सेना ने जिस तरह से यह रैप्टर को अपडेट रोल आउट करता है, उसे सुधारने का फैसला किया।



एक पारंपरिक दृष्टिकोण के बजाय, जिसमें आवश्यकताओं को विस्तार से प्रलेखित किया जाता है और अद्यतन तब तक वितरित नहीं किया जाता है जब तक कि प्रत्येक तत्व पूरा न हो जाए, यूएसएएफ 'फुर्तीली' विकास के रूप में जाना जाने वाले दृष्टिकोण का उपयोग करके एक रोलिंग के आधार पर नई क्षमताओं को पेश करना चाहता था।

USAF stealth Fighter jet Lockheed Martin F-22 Raptor image
Lockheed Martin F-22 Raptor


अमेरिका दुनिया का सबसे ताकतवर देश है। उसके पास एक से बढ़कर एक लड़ाकू विमान हैं। जिनमें F-22, F-35 जैसे लड़ाकू विमान शामिल हैं । इन्हीं खतरनाक लड़ाकू विमानों की वजह से अमेरिकी वायुसेना सबसे ताकतवर वायु सेना है। 


वायु सेना ने चार साल पहले "फुर्तीली क्षमता वितरण पाइपलाइन" में चल रहे एफ -22 आधुनिकीकरण के प्रयासों का पुनर्गठन किया। कम, बड़े वाले के बजाय कई छोटे अद्यतनों के साथ, आधुनिकीकरण जिसने एक दशक या उससे अधिक समय लिया, अब कुछ ही वर्षों में होने लग सकता है। 



वायु सेना के लिए, लिंक -16 को एफ -22 में जोड़ना, वाटरमैन के अनुसार एक सर्वोच्च प्राथमिकता बन गई। 



रविवार, 2 जून 2019

अमेरिका ने भारत को जीएसपी कार्यक्रम से बाहर किया

अमेरिका ने भारत को जनरलाइज्ड सिस्टम ऑफ प्रेफरेंसेज (जिसे संक्षेप में जीएसपी कहते है) से बाहर कर दिया है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा कि भारत को जीएसपी से बाहर करने का आदेश इस महीने के 5 तारीख से लागू हो जाएगा। क्योंकि, भारत अपने मार्केट में अमेरिका को बराबर और अच्छी पहुंच उपलब्ध करवाने का भरोसा नहीं दिया है। ट्रम्प ने 4 मार्च को भारत को जीएसपी से बाहर करने का फैसला किया था। इसके लिए भारत को 60 दिन का नोटिस दिया गया था जो 3 मई को खत्म हो चुका है। जनरलाइज्ड सिस्टम ऑफ प्रेफरेंसेज (जीएसपी) कार्यक्रम के तहत भारत अपना जो- जो प्रोडक्ट अमेरिका को निर्यात करता है उन पर वहां भारत को आयात शुल्क नहीं चुकाना पड़ता। 
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने कहा- भारत को जीएसपी से बाहर करने का फैसला लागू करेंगे इस कार्यक्रम के तहत विकासशील देशों को अमेरिका में आयात शुल्क से छूट मिलती है यूएस की दलील- भारत में अमेरिकी उत्पादों पर बहुत ज्यादा आयात शुल्क लगता है | अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने शुक्रवार को कहा कि भारत को जनरलाइज्ड सिस्टम ऑफ प्रेफरेंसेज (जीएसपी) से बाहर करने का फैसला 5 जून से लागू हो जाएगा। USA India trade, India trade benefit, GSP, Trade War suspension of preferential  trade status for india is done deal says trump administration



  • 2017 में भारत को 40,000 करोड़ रु. के सामान पर शुल्क में छूट मिली थी


जीएसपी कार्यक्रम के तहत इस कार्यक्रम में शामिल विकासशील देशों को अमेरिका में आयात शुल्क से छूट मिलती है। इसके तहत भारत करीब 2000 उत्पाद अमेरिका को निर्यात करता है। इन उत्पादों पर अमेरिका में इंपोर्ट ड्यूटी नहीं लगती। भारत 2017 में जीएसपी कार्यक्रम का सबसे बड़ा लाभार्थी देश था। उसे अमेरिका में 5.7 अरब डॉलर (40,000 करोड़ रुपए) के आयात पर शुल्क में छूट मिली थी।

धमकी / रूस से एस-400 डिफेंस सिस्टम का सौदा: अमेरिका ने कहा- भारत से रिश्तों पर गंभीर असर होगा

वायुसेना और इसरो के बीच समझौता हुआ 2022 तक 3 भारतीय अंतरिक्ष की सैर करेगें

फिलीपींस में नया कानून- ग्रेजुएशन की डिग्री तभी मिलेगी जब छात्र 10 पौधे लगाएंगे



अमेरिका का मानना है कि भारत अपने अनेक सामान यूएसए में बिना किसी आयात शुल्क के बेचता है, लेकिन भारत में सामान बेचने के लिए अमेरिका को आयात शुल्क चुकाना होता है। अमेरिका ने कहा कि भारत सरकार के साथ इस मुद्दे पर बातचीत करके इस समस्या का हल निकाला जाएगा।

इस मामले पर भारत का क्या कहना है 

भारत को जीएसपी कार्यक्रम से बाहर करने के अमेरिका के फैसले पर भारत ने कहा है कि भारत ने इस समस्या का हल पेश किया था लेकिन अमेरिका ने भारत के प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया। इस तरह के मामलों में अमेरिका और अन्य देशों की तरह भारत भी देशहित का ख्याल रखता है। आर्थिक संबंधों के मामलों में ऐसे मुद्दे बने रहते हैं जिन्हें समय-समय पर दोनों पक्षों के आपसी सहमति से इनका हल निकाला जाता है। भारत को जीएसपी से बाहर करने का मामला भी इसी प्रक्रिया का हिस्सा है। हम अमेरिका के साथ मजबूत रिश्ते जारी रखेंगे।


इंजीनियरिंग में उपयोग होने वाले सामान, तकिया-कुशन कवर, उत्पाद। महिलओं के हाथ से बुने हुए कपड़े, ऑटोमोबाइल कंपोनेंट, ऑर्गेनिक केमिकल्स, कृषि, समुद्री और हैंडीक्राफ्ट, फूड, लेदर और प्लास्टिक प्रोडक्ट, बिल्डिंग मैटेरियल प्रोडक्ट, हैंड टूल्स, आदि वस्तुएं भारत अमेरिका को निर्यात करता है।

भारत पर क्या असर पड़ेगा?

अमेरिका ने मार्च में जब भारत को जीएसपी से बाहर करने के फैसला किया था तब भारत के वाणिज्य सचिव अनूप धवन ने कहा था कि इस फैसले से भारत पर ज्यादा असर नहीं पड़ेगा क्योंकि पिछले साल भारत ने जीएसपी के तहत अमेरिका को 560 करोड़ डॉलर (39,200 करोड़ रुपए) के सामान का निर्यात किया। इस पर सिर्फ 19 करोड़ डॉलर  के आयात शुल्क की बचत हुई।

इससे अमेरिका पर क्या असर होगा: -

अमेरिका के द्वारा चलाए जा रहे जीएसपी कार्यक्रम के तहत भारत बहुत से वस्तुओं का  निर्यात करता है। इससे अमेरिकी कंपनियों को अपने प्रोडक्ट की लागत कम होती है। भारत को जीएसपी से बाहर करने से अमेरिका में अनेक  उत्पादों के दाम बढ़ना तय है क्योंकि भारत जो सामान निर्यात करता है उससे अमेरिक  कंपनियां अन्य प्रोडक्ट निर्माण करती है।इससे अमेरिकी कंपनियां और उपभोक्ता दोनों प्रभावित होंगे।


आखिर ये जीएसपी कार्यक्रम क्या है?

जीएसपी कार्यक्रम 1 जनवरी 1976 को अमेरिका के ट्रेड एक्ट-1974 के तहत शुरू किया गया था। इसका उद्देश्य दुनिया के विकासशील देशों के निर्यात को बढावा देेेेना था। इसमें शामिल देशों को अमेरिका में उत्पाद बेचने पर किसी  भी प्रकार का  आयात शुल्क नहीं देना होता है। इस कार्यक्रम में भारत समेत 121 देश शामिल हैं।


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शुक्रवार, 31 मई 2019

धमकी / रूस से एस-400 डिफेंस सिस्टम का सौदा: अमेरिका ने कहा- भारत से रिश्तों पर गंभीर असर होगा


भारत और रूस के बीच पिछले साल हुई एस-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम डील पर अमेरिका ने नाराजगी जताई है। डोनाल्डट्रम्प प्रशासन ने गुरुवार रात धमकी देते हुए कहा है कि भारत का यह फैसला अमेरिका और भारत के रिश्तों पर गंभीर असर डालेगा।
अमेरिकी विदेश विभाग के एक अफसर ने कहा, भारत का रूस के साथ रक्षा समझौता करना बड़ी बात है, क्योंकि ‘काट्सा कानून’ के तहत दुश्मनों से समझौता करने वालों पर अमेरिकी प्रतिबंध लागू होते हैं। ट्रम्प प्रशासन पहले ही साफ कर चुका है कि इस कानून के बावजूद समझौता करने वाले देश रूस को गलत संदेश पहुंचा रहे हैं। यह चिंता की बात है।’’
S-400 missile defence system


तुर्की पर हो चुकी कार्रवाई

अफसर ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, “आप देख सकते हैं अमेरिका दुश्मनों से समझौता करने वालों पर कैसी कार्यवाही कर रहा है। हमने अपने नाटो पार्टनर तुर्की को भी एस-400 खरीदने के लिए कड़ा संदेश दिया है।” अमेरिका ने हाल ही में रूस से रक्षा समझौता करने के लिए तुर्की को लॉकहीड मार्टिन के एफ-35 फाइटर जेट बेचने पर रोक लगाई थी।


अमेरिका ने कहा भारत तय करे उसे किसका साथ चाहिए
अमेरिका का कहना है कि वह इस तरह के मामलों में हर देश से अलग तरह से निपटेगा। हालांकि, बड़ा मुद्दा यह है कि भारत के सैन्य रिश्ते किस तरफ जा रहे हैं। किसके साथ वह आधुनिक तकनीक और बेहतर माहौल साझा करना चाहता है। हमारे बीच कॉम्बैट एयरक्राफ्ट और कई अन्य विकसित हथियारों के समझौते पर बात चल रही है। ऐसे में भारत की एस-400 डील का बातचीत पर असर पड़ेगा।


काट्सा कानून के तहत प्रतिबंध लगा सकता है अमेरिका

दरअसल, अमेरिका काट्सा कानून के तहत अपने दुश्मन से हथियार खरीदने वाले देशों पर प्रतिबंध लगा सकता है। इस लिहाज से भारत भी रूस से हथियार खरीदने के लिए प्रतिबंधों के दायरे में आ सकता है, लेकिन अमेरिका और भारत का रक्षा व्यापार बीते समय में काफी बढ़ा है। इसके चलते वह भारत पर प्रतिबंध लगाने से बचना चाहता था।

S-400 मिसाइल सिस्टम: 2020 से डिलिवरी देना शुरू करेगा रूस


रूस के साथ हुई S-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम की डील के तहत भारत को अक्टूबर 2020 से डिलिवरी शुरू हो जाएगी। भारत ने रूस के साथ 5 एस-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम्स की डील की है। रूस की ओर से अक्टूबर 2020 से अप्रैल 2023 तक इनकी डिलिवरी कर दी जाएगी। रक्षा राज्य मंत्री सुभाS-400 मिसाइल सिस्टम से भारत को संवेदनशील इलाकों में हवाई सुरक्षा की ताकत मिल जाएगी।

भारत ने रूस के साथ S-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम्स के लिए 40,000 करोड़ रुपये की डील की थी। भारत ने अमेरिकी की उस धमकी के बाद भी रूस के साथ यह डील की थी, जिसमें उसने रूस के डील करने वाले देशों पर प्रतिबंध की बात कही थी। 

बुधवार, 29 मई 2019

फिलीपींस में नया कानून- ग्रेजुएशन की डिग्री तभी मिलेगी जब छात्र 10 पौधे लगाएंगे

  • फिलीपींस में नया कानून- ग्रेजुएशन की डिग्री तभी मिलेगी जब छात्र 10 पौधे लगाएंगे

मनीला. 20 वीं सदी में फिलीपींस में वन 70% से कम होकर 20% तक सिमट गया है। पर्यावरण को बचाने के लिए वहां एक अच्छी पहल की गई है। सरकार चाहती है कि देश को फिर से हरा-भरा बनाया जाए। इसके लिए फिलीपींस में नया कानून बनाया गया है, इसमें ग्रेजुएशन पूरा करने से पहले छात्रों के लिए कम से कम 10 पौधे लगाना अनिवार्य कर दिया गया है।

Planting plant, रिपोर्ट्स के मुताबिक, इस कानून के जरिए एक साल में फिलीपींस में 17.5 करोड़ पौधे लग सकेंगे सरकार और विपक्षी पार्टियों ने पर्यावरण संरक्षण के लिहाज से कानून को मंजूरी दी। Philippines passes law Requiring student to Plant 10 trees if they went to graduate


525 अरब पौधे लगाने का लक्ष्य

रिपोर्ट्स के मुताबिक, इस कानून के जरिए एक साल में फिलीपींस में 17.5 करोड़ पौधे लगाए जाएंगे । सरकार और विपक्षी पार्टियों ने पर्यावरण संरक्षण के लिहाज से कानून को मंजूरी दी.  फिलीपींस की मैग्डलो पार्टी के नेता गैरी अलेजनो की इस कानून को तैयार करने में अहम भूमिका रही। उनका कहना है कि सब कुछ ठीक रहा तो एक पीढ़ी करीब 525 अरब पौधे लगाएगी। जितने पौधे लगाए जाते हैं, उनमें 10% ही जीवित रह पाते हैं। यानी अगली पीढ़ी के लिए 52.5 करोड़ पौधे उपलब्ध होंगे।


चाबहार बंदरगाह पर भारत का नियंत्रण

श्रीलंका से बोट में 15 आईएस आतंकी भारत की ओर बढ़ रहे, कोस्टगार्ड अलर्ट पर

प्रेमिकाओं के प्यार में मारे जा रहे आंतकी

हर साल पास होते हैं 5 लाख कॉलेज ग्रेजुएट

अलेजनो के मुताबिक- फिलीपींस में हर साल तकरीबन 1 करोड़ 75 लाख छात्र अलग-अलग डिविजन की क्लास पास करते हैं। इनमें 1 करोड़ 20 लाख एलिमेंट्री क्लासेज से पास होते हैं। जबकि 50 लाख हाईस्कूल से और 5 लाख कॉलेजों से ग्रेजुएट होते हैं। इन सभी को मिलाकर देखा जाए तो नए कानून के मुताबिक हर साल 17.5 करोड़ पौधे लगाए जा सकते हैं।


जगह के हिसाब से हो पौधरोपण

कानून के मुताबिक- पौधे ऐसी जगहों पर लगाए जाएं, जहां उनके जीवित रहने की संभावना ज्यादा हो। इनमें वन क्षेत्र, संरक्षित एरिया, मिलिट्री रेंज और शहरों की चुनिंदा जगहें शामिल हैं। पौधों का चयन भी जगह को देखकर किया जाना चाहिए। कानून के मुतबिक देश में तैयार प्रजातियों के पौधों को प्राथमिकता के आधार पर लगाया जाएगा।


वन क्षेत्र सिमटने से प्राकृतिक आपदाएं हो रहीं

कानून को लागू करने का जिम्मा देश के शिक्षा विभाग के साथ उच्च शिक्षा आयोग को दिया गया है। कानून बनाने का उद्देश्य ग्लोबल वार्मिंग से निपटने के साथ आने वाली पीढ़ी को पर्यावरण के प्रति जागरूक करना भी है। अलेजनो का कहना है कि वन क्षेत्र सिमटने की वजह से ही देश में प्राकृतिक आपदाएं बढ़ रही हैं। प्राकृतिक आपदाओं की वजह से लोग मारे जा रहे हैं साथ ही देश की अमूल्य धरोहरों को नुकसान पहुंच रहा है। इस कानून के लागू होने से इन समस्याओं से निपटने में मदद मिलेगी।

चाबहार बंदरगाह पर भारत का नियंत्रण

चाबहार बंदरगाह पर भारत का नियंत्रण

कूटनीतिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण ईरान के चाबहार बंदरगाह पर भारत का नियंत्रण हो गया है। 
भारत की मदद से विकसित हुए ईरान के चाबहार बंदरगाह पर भारतीय कंपनी ने अपना कामकाज सम्हाल लिया है। भारतीय कंपनी इंडिया पोर्ट्स ग्लोबल लिमिटेड ने शाहिद बहिश्ती बंदरगाह पर काम करने की शुरुआत कर दी है। भारतीय कंपनी को यह बंदरगाह फिलहाल 18 महीनों के लिए लीज़ पर दिया गया है, इस लीज को बाद में 10 वर्षों के लिए बढ़ा दिया जाएगा।
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चाबहार बंदरगाह

पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह को देगा टक्कर

पाकिस्तान में ग्वादर बंदरगाह के चीन ने विकसित किया है। इस बंदरगाह के बन जाने से भारत चिंतित था क्योंकि इससे पाकिस्तान और चीन को भारत पर सैन्य बढ़त मिल गई थी। इस बंदरगाह पर चीन का नियंत्रण है। ग्वादर बंदरगाह के मदद से चिनी और पाक जहाज कभी भी भारत पर आसानी से हमला कर सकते हैं। 




आर्थिक गतिविधियों मदद मिलेगी
चाबहार बंदरगाह परियोजना भारत को ईरान के रास्ते अफगानिस्तान तक साजो-सामान भेजने में काफी मददगार साबित होगी। इस परियोजना से तीनों मुल्कों को कारोबार औऱ आर्थिक गतिविधयां बढ़ाने में मदद मिलेगी। इस बंदरगाह के चालू होने के साथ ही ईरान, भारत, अफगानिस्तान और मध्य एशिया के अन्य देशों के बीच पाकिस्तानी रास्ते का इस्तेमाल किए बगैर एक नया रणनीतिक मार्ग भी मिल गया है। गौरतलब है कि चाबहार बंदरगाह के रास्ते भारत से अफगानिस्तान को 11 लाख टन गेंहू का पहला कनसाइनमेंट अक्टूबर 2017 में भेजा गया था। इसके बाद फरवरी 2018 में ईरान के राष्ट्रपति हसन रूहानी की भारत यात्रा के दौरान चाबहार के शाहिद बहिश्ती बंदरगाह का नियंत्रण भारतीय कंपनी को सौंपने का निर्णय हुआ था।

अटल सरकार में हुआ था समझौता
चाबहार बंदरगाह परियोजना के लिए अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के कार्यकाल के दौरान 2003 में आरंभिक समझौता किया गया था। हालांकि यह सौदा बाद के वर्षों में आगे नहीं बढ़ पाया था, लेकिन अब पिछले कुछ सालों में आई तेजी ने इस परियोजना को रफ्तार दी है। वहीं भारत द्वारा 2009 में निर्मित जारंज-देलारम सड़क अफगानिस्तान के राजमार्ग तक पहुंच प्रदान कर सकता है। ये रूट अफगानिस्तान के चार प्रमुख शहरों हेरात, कंदहार, काबुल और मजार-ए-शरीफ तक पहुंच प्रदान कर सकता है।


शुक्रवार, 26 अप्रैल 2019

रूस ने बनाई दुनिया की सबसे लंबी पनडुब्बी

रूस ने बनाई दुनिया की सबसे लंबी पनडुब्बी
Belgorod pandubbi launching event

रूस ने अब तक की दुनिया की सबसे लंबी पनडुब्बी बनाया है। इस पनडुब्बी का नाम बेलगोरोड रखा गया है। बेलगोरोड पनडुब्बी अब तक की सबसे लंबी पनडुब्बी होने के साथ दुनिया की सबसे ताकतवर पनडुब्बी बन गई है।इसकी  कुल लंबाई 604 फीट है इसमें 6 परमाणु हथियारों से लैस टॉरपीडो लगे हैं। यह टॉरपीडो 2 मेटाटन विस्फोटक  अपने साथ ले जाने में सक्षम है। 2 मेटाटन विस्फोटक की क्षमता जापान के हिरोशिमा में फटे बम से 130 गुना ज्यादा होती है। ये पनडुब्बी अपने एक वार से ही पूरे शहर को  तबाह कर सकती है। इस पनडुब्बी में लगे 79 फीट लंबे टॉरपीडो पोसेइडोन या कैनयोन अगर समुद्र के अंदर इस्तेमाल होंगे तो रेडियोएक्टिव सुनामी आ सकती है। यही रेडियोएक्टिव सुनामी कई तटीय शहरों में  तबाही ला सकती है और समुद्र में 300 फीट तक ऊंची लहरें उठ सकती हैं।
बेलगोरोड पनडुब्बी की रफ्तार 80 मील प्रति घंटा है। इसके कमांडर सीधे राष्ट्रपति पुतिन को रिपोर्ट करेगें।यह  अंडरवाटर इंटेलिजेंस एंजेसी  की तरह कार्य करेगा। इस पनडुब्बी का सैन्य परीक्षण चल रहा है और सन् 2021 में यह रूसी नौसेना में शामिल होगा।

इस पनडुब्बी को तब सैन्य परीक्षण के लिए उतारा गया है जब उत्तर कोरिया के तानाशाह किम जोंग उन रूस के दौरे पर गए हैं। वे रूस अपने निजी ट्रेन से गए हैं। 

गुरुवार, 25 अप्रैल 2019

चीन से आने वाले दूध प्रोडक्ट पर भारत ने लगाया रोक

चीन से आने वाले दूध प्रोडक्ट पर भारत ने लगाया रोक 
India prohibits imports from China imported milk and made products

विदेशों से आयात होने वाले दूध और इससे बने प्रोडक्ट को लेकर सरकार सख्त हो गई है। फूड रेग्युलेटर एफएसएसएआई ने चीन से आयात होने वाले दूध और इससे बने प्रोडक्ट पर प्रतिबंध लगा दिया है। इससे पहले भी भारत ने चीन से आयात होने वाले दूध और अन्य प्रोडक्ट पर बैन लगाया था। लेकिन वो प्रतिबंध कुछ समय के लिए ही लगाया गया था। एफएसएसएआई ने बताया कि इस बार चीन से आयात होने वाले दूध और इससे बने प्रोडक्ट पर लगाया गया प्रतिबंध तब तक जारी  रहेगा जब तक कि फूड रेग्युलेटर देश के सभी  बंदरगाह लैबोरेट्री को दुरुस्त और आधुनिक नहीं कर लेती।
Milk products India imposed restrictions on milk imported from China and made from it

इन  लैबोरेट्री को कब तक आधुनिक बनाया जाएगा ताकि वह इस तरह के रसायन की जांच की कर सके इसके बारे में ज्यादा जानकारी नहीं दी गई और ना ही कोई समय सीमा तय किया गया है। चीन से दूध के प्रोडक्ट पर तब प्रतिबंध लगाया गया था जब उसकी कुछ दूध सामग्री में मेलामीन रसायन होने की आशंका हुई थी। मेलामीन  एक खतरनाक जहरीला रसायन है। इसका उपयोग प्लास्टिक और उर्वरक बनाने में किया जाता है। यही कारण है कि भारत चीन से दूध और दूध से बने प्रोडक्ट का आयात नहीं करता है। सुरक्षा उपाय के तौर पर इस तरह के आयात पर प्रतिबंध लगाया गया है।खाद्य क्षेत्र के नियामक एफएसएसएआई ने एक वक्तव्य में कहा कि उसने चीन से दूध और इससे बने उत्पादों पर लगाई गई रोक को तब तक बढ़ाने की सिफारिश की थी जब तक कि बंदरगाहों की प्रयोगशालाओं में खतरनाक रसायन के परीक्षण की सुविधा उपलब्ध नहीं हो जाती है।सरकार ने इस सिफारिश को मानते हुए रोक की समय सीमा तब तक के लिए बढ़ा दी। भारत दुनिया का सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक देश है। देश में सालाना 15 करोड़ टन दूध उत्पादन होता है। 

चीन से दूध और इससे बने प्रोडक्ट के आयात पर सबसे पहले सितम्बर 2008 में रोक लगाई गई थी। इसके बाद से इस रोक को लगातार समय समय पर आगे बढ़ाया जाता रहा है। यह प्रतिबंध अब अनिश्चित काल के लिए लगाया गया है क्यों कि यह तय नहीं किया गया है कि कब तक बंदरगाहों में प्रयोगशालाओं को आधुनिक बनाया जाएगा।

पहले भी चीन पर खाद्य पदार्थों में मिलावट के आरोप लगे हैं

यह पहली बार नहीं हो रहा कि चीन पर खाद्य पदार्थों में मिलावट के आरोप लगे हैं।इससे पहले चीन से आयात होने वाले अंडो तथा अन्य खाद्य पदार्थों में मिलावट की सिकायत किया गया था।चीन से आयात होने वाले अंडे विशेष रासायनिक पदार्थों से बने होते हैं जो कि सेहत के लिए खतरनाक है।

बुधवार, 24 अप्रैल 2019

2 मई के बाद ईरान से क्रूड आयात करने वाले देशों पर प्रतिबंध लगाएगा अमेरिका

2 मई के बाद ईरान से क्रूड आयात करने वाले देशों पर प्रतिबंध लगाएगा अमेरिका
U.S. President Donald Trump and Hassan Rouhani

अमेरिका 2 मई के बाद ईरान से कच्चे तेल खरीदने की छूट नहीं देगा। अगर कोई देश ईरान से कच्चा तेल खरीदत है तो अमेरिका उस पर आर्थिक प्रतिबंध लगाएगा। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंम्प के आफिस की तरफ से सोमवार को इस सिलसिले में बयान जारी किया गया। 

अमेरिका ने पिछले साल नवंबर में ईरान के कच्चे तेल के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया था। लेकिन उसने भारत, चीन, जापान सहित आठ देशों को क्रूड आयल खरीदने के अन्य विकल्प तलाशने के लिए 6 महीनों की मोहलत दी थी जो मई में खत्म हो रहा है। जो देश पहले ईरान से क्रूड ऑयल खरीदते थे अब उन देशों को ईरान से तेल खरीदना बंद करना पड़ेगा। अब इन देशों को  क्रूड आयल संयुक्त अरब, संयुक्त अरब अमीरात तथा अन्य तेल उत्पादक देशों से खरीदना पड़ेगा। 

जिन  आठ देशों को तेल खरीदने के दूसरे विकल्प तलाशने की मोहलत दी गई थी उनमें से तीन देश - ग्रीस इटली और ताइवान ने ईरान से तेल खरीदना बंद कर दिया है। अब केवल भारत, चीन, तुर्की, जापान और दक्षिण कोरिया ही खरीद रहे हैं। जापान और दक्षिण कोरिया ईरान के तेल पर ज्यादा निर्भर नहीं हैं। ईरान से सबसे ज्यादा तेल चीन खरीदता है फिर भारत दूसरा सबसे बड़ा खरीददार है।

अमेरिका और ईरान के बीच बरसों पुरानी दुश्मनी है। बराक ओबामा के राष्ट्रपति रहते हुए अमेरिका ने सन् 2015 में ईरान के साथ परमाणु समझौता किया था। डोनाल्ड ट्रंप ने राष्ट्रपति बनने के बाद इस सनझौते से अमेरिका को अलग कर दिया था। उनका मानना था कि यह परमाणु संधि त्रुटि पूर्ण है, इस संधि से ईरान को फायदा होगा। अमेरिका का मानना है कि समझौते के बाद भी ईरान ने अपना परमाणु कार्यक्रम जारी रखा है और वह जल्द ही परमाणु हथियार बना लेगा भले ही वह संधि के शर्तों  का पालन करें या ना करे।

ईरान पर क्रूड ऑयल बेचने पर प्रतिबंध लगने से तेल बाजार में प्रतिष्पर्धा कम हो जाएगी फलस्वरूप तेल के दामों में वृद्धि होगी। ईरान पर प्रतिबंध लगाना अमेरिका की एकतरफा और दोषपूर्ण कार्यवाही है। यह प्रतिबंध ऐसे समय लगा है जब भारत  और ईरान के सम्बन्ध प्रगाढ़ हुए हैं। भारत  ईरान में सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण चाबहार बंदरगाह का निर्माण कर रहा है।
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