दुनिया की सबसे बड़ी व्यापार समझौते RCEP डील से पिछे हटा भारत, चीनी माल के भारत में डंप होने तथा घरेलू चिताएँ इस डील से पिछे हटने का कारण बना
थाईलैंड की राजधानी बैंकाक में हुए क्षेत्रीय व्यापार आर्थिक भागीदारी या RCEP समझौते से भारत पिछे हट गया है। भारत ने क्षेत्रीय व्यापार आर्थिक भागीदारी समझौते में शामिल नहीं होने का फैसला लिया है। इसे दुनिया की सबसे बड़ा मुक्त व्यापार समझौते कहा जा रहा है जिसमें भारत , चीन, जापान, आस्ट्रेलिया, आसियान देश जैसे करीब 16 एशियाई देश शामिल होंगे।
अब भारत के इस व्यापार समझौते से बाहर आ जाने से इस व्यापार समझौते में शामिल होने वाले देशों को बहुत बड़ा धक्का लगा है, क्योंकि सबको लग रहा था कि भारत इस समझौते पर हस्ताक्षर करेगा। लेकिन घरेलू परिस्थितियों को देखते हुए भारत सरकार आरसीईपी समझौते से पिछे हट गई। Rcep डील दुनिया की सबसे बड़ी व्यापार डील है।
इस समझौते की महत्व का अंदाजा इस बात बात से लगाया जा सकता है कि इन देशों में दुनिया की आधी आबादी रहती है इसका मतलब ये है कि कारोबार करने के लिए दुनिया का आधा बाजार इनको मिल जाएगा। दुनिया की एक तिहाई जीडीपी इस मुक्त व्यापार समझौते के माध्यम से आएगी। इसके साथ ही दुनिया के लगभग 40 फीसदी कारोबार पर rcep समझौते का हो जाएगा।
इस समझौते में शामिल होना भारत के लिए घातक हो सकता था यही कारण था कि समूचा देश इस समझौते में शामिल होने के खिलाफ था। rcep समझौते में शामिल 16 देशों की अर्थव्यवस्था को देखें तो ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड को छोड़कर बाकी के 12 से ज्यादा देशों की अर्थव्यवस्था उत्पादन पर आधारित है इस समझौते में सबसे बड़ी ताकत चीन है जो दुनिया की सबसे बड़ा उत्पादक देश है।
जबकि भारत की अर्थव्यवस्था आईटी और सर्विस सेक्टर पर आधारित है। इस समझौते से भारत को ज्यादा फायदा नहीं होता बल्कि भारत को बहुत नुकसान उठाना पड़ता। इस मुक्त व्यापार समझौते में भारत के शामिल हो जाने से भारत का निर्यात तो नहीं बढ़ता बल्कि आयात बहुत ज्यादा बढ़ जाता जिससे हमारी देश की व्यापार घाटा बढ़ जाता। इस समझौते में भारत के शामिल हो जाने से भारत के घरेलू उद्योगों और किसानों को बहुत नुकसान उठाना पड़ता।
वर्तमान में भारत दुनिया का सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक देश है लेकिन उसका ज्यादातर ही साफ देश में ही कब जाता है जबकि इसके ठीक उलट न्यूजीलैंड अपने कुल दुग्ध उत्पादन का 95% हिस्सा निर्यात करता है। जो दूध भारत में किसान से ₹31 प्रति लीटर में खरीदा जा रहा है उसकी कीमत न्यूजीलैंड में सिर्फ ₹10 है। अगर यह दूध भारत में आने लगा दो देश के किसान और इससे जुड़े संगठन पूरी तरह से बर्बाद हो जाएंगे और भारत की घरेलू दुग्ध इंडस्ट्री पूरी तरह से बर्बाद हो जाएगी।
भारत ने आसियान और पड़ोसी देशों से जो पहले फ्री ट्रेड एग्रीमेंट किए हैं उनकी वजह से देश का कपड़ा उद्योग पहले ही संकट में फंसा हुआ है। इन देशों के साथ व्यापार घाटा लगातार बढ़ता जा रहा है।
rcep में भारत की सबसे बड़ी चिंता और आपत्ति टैरिफ रिडक्शन का आधार वर्ष 2014 किए जाने पर थी भारत चाहता था कि इसे 2019 रखा जाए 2014 आधार वर्ष रखे जाने का सबसे बड़ा नुकसान यह होता है कि लगभग सारे इलेक्ट्रॉनिक प्रोडक्ट्स शत-प्रतिशत ड्यूटी फ्री हो जाते और चीनी कंपनियां अपने उत्पादों से भारत के बाजार को लगभग पाठ देती। भारत सर्विस सेक्टर को इस आरसीपी समझौते में शामिल करवाना चाहता था जिसमें भारत बहुत ही मजबूती स्थिति में है इसके लिए बाकी देश तैयार नहीं थे इन सब कारणों से भारत ने आरसीएपी समझौते से पीछे हटने का फैसला लिया।
थाईलैंड की राजधानी बैंकाक में हुए क्षेत्रीय व्यापार आर्थिक भागीदारी या RCEP समझौते से भारत पिछे हट गया है। भारत ने क्षेत्रीय व्यापार आर्थिक भागीदारी समझौते में शामिल नहीं होने का फैसला लिया है। इसे दुनिया की सबसे बड़ा मुक्त व्यापार समझौते कहा जा रहा है जिसमें भारत , चीन, जापान, आस्ट्रेलिया, आसियान देश जैसे करीब 16 एशियाई देश शामिल होंगे।
अब भारत के इस व्यापार समझौते से बाहर आ जाने से इस व्यापार समझौते में शामिल होने वाले देशों को बहुत बड़ा धक्का लगा है, क्योंकि सबको लग रहा था कि भारत इस समझौते पर हस्ताक्षर करेगा। लेकिन घरेलू परिस्थितियों को देखते हुए भारत सरकार आरसीईपी समझौते से पिछे हट गई। Rcep डील दुनिया की सबसे बड़ी व्यापार डील है।
इस समझौते की महत्व का अंदाजा इस बात बात से लगाया जा सकता है कि इन देशों में दुनिया की आधी आबादी रहती है इसका मतलब ये है कि कारोबार करने के लिए दुनिया का आधा बाजार इनको मिल जाएगा। दुनिया की एक तिहाई जीडीपी इस मुक्त व्यापार समझौते के माध्यम से आएगी। इसके साथ ही दुनिया के लगभग 40 फीसदी कारोबार पर rcep समझौते का हो जाएगा।
इस समझौते में शामिल होना भारत के लिए घातक हो सकता था यही कारण था कि समूचा देश इस समझौते में शामिल होने के खिलाफ था। rcep समझौते में शामिल 16 देशों की अर्थव्यवस्था को देखें तो ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड को छोड़कर बाकी के 12 से ज्यादा देशों की अर्थव्यवस्था उत्पादन पर आधारित है इस समझौते में सबसे बड़ी ताकत चीन है जो दुनिया की सबसे बड़ा उत्पादक देश है।
जबकि भारत की अर्थव्यवस्था आईटी और सर्विस सेक्टर पर आधारित है। इस समझौते से भारत को ज्यादा फायदा नहीं होता बल्कि भारत को बहुत नुकसान उठाना पड़ता। इस मुक्त व्यापार समझौते में भारत के शामिल हो जाने से भारत का निर्यात तो नहीं बढ़ता बल्कि आयात बहुत ज्यादा बढ़ जाता जिससे हमारी देश की व्यापार घाटा बढ़ जाता। इस समझौते में भारत के शामिल हो जाने से भारत के घरेलू उद्योगों और किसानों को बहुत नुकसान उठाना पड़ता।
वर्तमान में भारत दुनिया का सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक देश है लेकिन उसका ज्यादातर ही साफ देश में ही कब जाता है जबकि इसके ठीक उलट न्यूजीलैंड अपने कुल दुग्ध उत्पादन का 95% हिस्सा निर्यात करता है। जो दूध भारत में किसान से ₹31 प्रति लीटर में खरीदा जा रहा है उसकी कीमत न्यूजीलैंड में सिर्फ ₹10 है। अगर यह दूध भारत में आने लगा दो देश के किसान और इससे जुड़े संगठन पूरी तरह से बर्बाद हो जाएंगे और भारत की घरेलू दुग्ध इंडस्ट्री पूरी तरह से बर्बाद हो जाएगी।
भारत ने आसियान और पड़ोसी देशों से जो पहले फ्री ट्रेड एग्रीमेंट किए हैं उनकी वजह से देश का कपड़ा उद्योग पहले ही संकट में फंसा हुआ है। इन देशों के साथ व्यापार घाटा लगातार बढ़ता जा रहा है।
rcep में भारत की सबसे बड़ी चिंता और आपत्ति टैरिफ रिडक्शन का आधार वर्ष 2014 किए जाने पर थी भारत चाहता था कि इसे 2019 रखा जाए 2014 आधार वर्ष रखे जाने का सबसे बड़ा नुकसान यह होता है कि लगभग सारे इलेक्ट्रॉनिक प्रोडक्ट्स शत-प्रतिशत ड्यूटी फ्री हो जाते और चीनी कंपनियां अपने उत्पादों से भारत के बाजार को लगभग पाठ देती। भारत सर्विस सेक्टर को इस आरसीपी समझौते में शामिल करवाना चाहता था जिसमें भारत बहुत ही मजबूती स्थिति में है इसके लिए बाकी देश तैयार नहीं थे इन सब कारणों से भारत ने आरसीएपी समझौते से पीछे हटने का फैसला लिया।
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