चाबहार बंदरगाह पर भारत का नियंत्रण
कूटनीतिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण ईरान के चाबहार बंदरगाह पर भारत का नियंत्रण हो गया है।
भारत की मदद से विकसित हुए ईरान के चाबहार बंदरगाह पर भारतीय कंपनी ने अपना कामकाज सम्हाल लिया है। भारतीय कंपनी इंडिया पोर्ट्स ग्लोबल लिमिटेड ने शाहिद बहिश्ती बंदरगाह पर काम करने की शुरुआत कर दी है। भारतीय कंपनी को यह बंदरगाह फिलहाल 18 महीनों के लिए लीज़ पर दिया गया है, इस लीज को बाद में 10 वर्षों के लिए बढ़ा दिया जाएगा।
चाबहार बंदरगाह |
पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह को देगा टक्कर
पाकिस्तान में ग्वादर बंदरगाह के चीन ने विकसित किया है। इस बंदरगाह के बन जाने से भारत चिंतित था क्योंकि इससे पाकिस्तान और चीन को भारत पर सैन्य बढ़त मिल गई थी। इस बंदरगाह पर चीन का नियंत्रण है। ग्वादर बंदरगाह के मदद से चिनी और पाक जहाज कभी भी भारत पर आसानी से हमला कर सकते हैं।
आर्थिक गतिविधियों मदद मिलेगी
चाबहार बंदरगाह परियोजना भारत को ईरान के रास्ते अफगानिस्तान तक साजो-सामान भेजने में काफी मददगार साबित होगी। इस परियोजना से तीनों मुल्कों को कारोबार औऱ आर्थिक गतिविधयां बढ़ाने में मदद मिलेगी। इस बंदरगाह के चालू होने के साथ ही ईरान, भारत, अफगानिस्तान और मध्य एशिया के अन्य देशों के बीच पाकिस्तानी रास्ते का इस्तेमाल किए बगैर एक नया रणनीतिक मार्ग भी मिल गया है। गौरतलब है कि चाबहार बंदरगाह के रास्ते भारत से अफगानिस्तान को 11 लाख टन गेंहू का पहला कनसाइनमेंट अक्टूबर 2017 में भेजा गया था। इसके बाद फरवरी 2018 में ईरान के राष्ट्रपति हसन रूहानी की भारत यात्रा के दौरान चाबहार के शाहिद बहिश्ती बंदरगाह का नियंत्रण भारतीय कंपनी को सौंपने का निर्णय हुआ था।
अटल सरकार में हुआ था समझौता
चाबहार बंदरगाह परियोजना के लिए अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के कार्यकाल के दौरान 2003 में आरंभिक समझौता किया गया था। हालांकि यह सौदा बाद के वर्षों में आगे नहीं बढ़ पाया था, लेकिन अब पिछले कुछ सालों में आई तेजी ने इस परियोजना को रफ्तार दी है। वहीं भारत द्वारा 2009 में निर्मित जारंज-देलारम सड़क अफगानिस्तान के राजमार्ग तक पहुंच प्रदान कर सकता है। ये रूट अफगानिस्तान के चार प्रमुख शहरों हेरात, कंदहार, काबुल और मजार-ए-शरीफ तक पहुंच प्रदान कर सकता है।
चाबहार बंदरगाह परियोजना भारत को ईरान के रास्ते अफगानिस्तान तक साजो-सामान भेजने में काफी मददगार साबित होगी। इस परियोजना से तीनों मुल्कों को कारोबार औऱ आर्थिक गतिविधयां बढ़ाने में मदद मिलेगी। इस बंदरगाह के चालू होने के साथ ही ईरान, भारत, अफगानिस्तान और मध्य एशिया के अन्य देशों के बीच पाकिस्तानी रास्ते का इस्तेमाल किए बगैर एक नया रणनीतिक मार्ग भी मिल गया है। गौरतलब है कि चाबहार बंदरगाह के रास्ते भारत से अफगानिस्तान को 11 लाख टन गेंहू का पहला कनसाइनमेंट अक्टूबर 2017 में भेजा गया था। इसके बाद फरवरी 2018 में ईरान के राष्ट्रपति हसन रूहानी की भारत यात्रा के दौरान चाबहार के शाहिद बहिश्ती बंदरगाह का नियंत्रण भारतीय कंपनी को सौंपने का निर्णय हुआ था।
अटल सरकार में हुआ था समझौता
चाबहार बंदरगाह परियोजना के लिए अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के कार्यकाल के दौरान 2003 में आरंभिक समझौता किया गया था। हालांकि यह सौदा बाद के वर्षों में आगे नहीं बढ़ पाया था, लेकिन अब पिछले कुछ सालों में आई तेजी ने इस परियोजना को रफ्तार दी है। वहीं भारत द्वारा 2009 में निर्मित जारंज-देलारम सड़क अफगानिस्तान के राजमार्ग तक पहुंच प्रदान कर सकता है। ये रूट अफगानिस्तान के चार प्रमुख शहरों हेरात, कंदहार, काबुल और मजार-ए-शरीफ तक पहुंच प्रदान कर सकता है।
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